भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अम्न का राग / भाग 4 / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह }} Category:लम्बी कविता {{KKPageNavigation |पी...)
 
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
मैं सिर्फ एक महान विजय का इंदीवर जनता की आँख में
 
मैं सिर्फ एक महान विजय का इंदीवर जनता की आँख में
 
जो शांति की पवित्रतम आत्मा है।
 
जो शांति की पवित्रतम आत्मा है।
 +
 +
पश्चिम मे काले और सफ़ेद फूल हैं और पूरब में पीले और लाल
 +
उत्तर में नीले कई रंग के और हमारे यहाँ चम्पई-साँवले
 +
औऱ दुनिया में हरियाली कहाँ नहीं
 +
जहाँ भी आसमान बादलों से ज़रा भी पोंछे जाते हों
 +
और आज गुलदस्तों मे रंग-रंग के फूल सजे हुए हैं
 +
और आसमान इन खुशियों का आईना है।
 
</poem>
 
</poem>

06:19, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

आज मैंने गोर्की को होरी के आँगन में देखा
और ताज के साए में राजर्षि कुंग को पाया
लिंकन के हाथ में हाथ दिए हुए
और ताल्स्ताय मेरे देहाती यूपियन होंठों से बोल उठा
और अरागों की आँखों में नया इतिहास
मेरे दिल की कहानी की सुर्खी बन गया
मैं जोश की वह मस्ती हूँ जो नेरूदा की भवों से
जाम की तरह टकराती है
वह मेरा नेरुदा जो दुनिया के शांति पोस्ट आफ़िस का
प्यारा और सच्चा क़ासिद
वह मेरा जोश कि दुनिया का मस्त आशिक़
मैं पंत के कुमार छायावादी सावन-भादों की चोट हूँ
हिलोर लेते वर्ष पर
मैं निराला के राम का एक आँसू
जो तीसरे महायुद्ध के कठिन लौह पर्दों को
एटमी सुई-सा पार कर गया पाताल तक
और वहीं उसको रोक दिया
मैं सिर्फ एक महान विजय का इंदीवर जनता की आँख में
जो शांति की पवित्रतम आत्मा है।

पश्चिम मे काले और सफ़ेद फूल हैं और पूरब में पीले और लाल
उत्तर में नीले कई रंग के और हमारे यहाँ चम्पई-साँवले
औऱ दुनिया में हरियाली कहाँ नहीं
जहाँ भी आसमान बादलों से ज़रा भी पोंछे जाते हों
और आज गुलदस्तों मे रंग-रंग के फूल सजे हुए हैं
और आसमान इन खुशियों का आईना है।