भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साथ, सम, शांत / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह }} <poem> <pre> साथ, सम, शांत; स्वप्न - ...) |
छो |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | <pre> | + | <pre>साथ, सम, शांत; |
− | साथ, सम, शांत; | + | |
स्वप्न - सी सुंदर; | स्वप्न - सी सुंदर; | ||
सिर्फ़ दो ममियाँ। | सिर्फ़ दो ममियाँ। | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 25: | ||
हम, तुम। | हम, तुम। | ||
− | (1939) | + | (1939)</pre> |
− | </pre> | + | |
</poem> | </poem> |
06:55, 16 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
साथ, सम, शांत;
स्वप्न - सी सुंदर;
सिर्फ़ दो ममियाँ।
कहाँ जगतीतल?
कहाँ नभ अमल?
कल? आज? कल?
नायकता की दो भवें
मिली; दो पलकें पीलीं;
स्थिर, सोईं।
वीतराग जीवन में गहरी
भूलों की
अधर-पंखुड़ियों-सी,
मौन, सुप्त।
सिर्फ़ दो ममियाँ।
हम, तुम।
(1939)