भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे नहीं भाता मेरा भावी स्मारक / येव्गेनी येव्तुशेंको" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको |संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{ | + | {{KKRachna |
|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको | |रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको | ||
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको | |संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको | ||
}} | }} | ||
[[Category:रूसी भाषा]] | [[Category:रूसी भाषा]] | ||
+ | <Poem> | ||
− | (गिओर्गी इवानोफ़ की स्मृति में) | + | '''(गिओर्गी इवानोफ़ की स्मृति में) |
मुझे नहीं भाता | मुझे नहीं भाता | ||
− | |||
मेरा भावी स्मारक | मेरा भावी स्मारक | ||
− | |||
लगाया जाएगा जो | लगाया जाएगा जो | ||
− | |||
तीसरी दुनिया के किसी देश में | तीसरी दुनिया के किसी देश में | ||
− | |||
जहाँ महाशक्तियाँ चुपचाप | जहाँ महाशक्तियाँ चुपचाप | ||
− | |||
अपनी जेब में रखे कमंद में | अपनी जेब में रखे कमंद में | ||
− | |||
अपनी जुएँ छिपाकर | अपनी जुएँ छिपाकर | ||
− | |||
घूँसे उछालती हैं | घूँसे उछालती हैं | ||
− | |||
जहाँ झुके हुए हैं केले के पेड़ | जहाँ झुके हुए हैं केले के पेड़ | ||
− | |||
और पड़े हुए हैं सड़े-गले राकेट | और पड़े हुए हैं सड़े-गले राकेट | ||
− | |||
--बस इतने ही फल हैं हमारे पास | --बस इतने ही फल हैं हमारे पास | ||
अन्तोनफ़्का किस्म के सेब नहीं है | अन्तोनफ़्का किस्म के सेब नहीं है | ||
− | |||
− | |||
मुझे नहीं चाहिए | मुझे नहीं चाहिए | ||
− | |||
स्मारक | स्मारक | ||
− | |||
मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि | मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि | ||
− | |||
लौटा दिया जाए मुझे | लौटा दिया जाए मुझे | ||
− | |||
मौत के बाद ख़त्म हुआ देश | मौत के बाद ख़त्म हुआ देश | ||
+ | </poem> |
01:34, 17 फ़रवरी 2009 का अवतरण
(गिओर्गी इवानोफ़ की स्मृति में)
मुझे नहीं भाता
मेरा भावी स्मारक
लगाया जाएगा जो
तीसरी दुनिया के किसी देश में
जहाँ महाशक्तियाँ चुपचाप
अपनी जेब में रखे कमंद में
अपनी जुएँ छिपाकर
घूँसे उछालती हैं
जहाँ झुके हुए हैं केले के पेड़
और पड़े हुए हैं सड़े-गले राकेट
--बस इतने ही फल हैं हमारे पास
अन्तोनफ़्का किस्म के सेब नहीं है
मुझे नहीं चाहिए
स्मारक
मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि
लौटा दिया जाए मुझे
मौत के बाद ख़त्म हुआ देश