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"यह बेकली ही हृदय की छाया है / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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04:00, 19 फ़रवरी 2009 का अवतरण

कैसे बता सकती हूं कि क्या होता है हृदय हालांकि उसे दिखला देना चाहती हूं सामने वाले को पर शब्द इसमें जरा सहायक नहीं होते

बस मेरी आंखों में उठे सवाल ही बता सकते हैं कुछ कि क्या तुम महसूस कर रहे हो मेरा हृदय कि मेरी यह बेकली हृदय की छाया है यह यह अकुलाहट और क्या क्या ...

नहीं वह सीने में नहीं वजूद में धड़कता है पूरे

समा जाना चाहता है

एक दूजे में त्वचा को विदीर्ण कर पर असफल रहता है और व्याकुल कि यह असफलता ही हृदय का होना है कि उसके बारे में ठीक ठीक न बता पाने की मजबूरी ही उसके होने का प्रमाण है ...