भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बत्तीसवें जन्मदिवस पर / केशव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=केशव
 
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=भविष्य के नाम पर / तुलसी रमण
+
|संग्रह=भविष्य के नाम पर / केशव्
 
}}
 
}}
 
<Poem>
 
<Poem>

22:00, 20 फ़रवरी 2009 का अवतरण

बत्तीस बरसों का यह
लम्बा अंतराल लांघ किसी तरह
जिस ज़मीन पर खड़ा हूं
एक असह्य बोझ तले दबी लड़खड़ा रही है
खुद को संभालने की
तमाम कोशिशों के बावजूद
डूबता जा रहा हूँ
गर्व से सीना ताने बढ़ती
आज़ादी की धुआंती चिमनी में

मेरी सोच और महसूसने की तमाम
शक्तियां होती जा रही हैं कुंठित
दोगली स्थितियों से लड़ते-लड़ते

और देश का नेता
दुनिया में अपना नाम रोशन
करने के चक्कर में
चला रहा है हवा में तलवारें
मुझे सिखा रहा
कागज की नावों पर बहने का मंत्र


हर रात
नये सूरज के इंतजार में
पटरियों पर लेटता है जो हुजूम
सुबह उसे गला हुआ अंग
करार दे दिया जाता है
जब भी इस दुस्वपन को कुरेदने की खातिर
बढ़ाता हूँ नाखून
मुझे खून के धब्बे पोंछने का
रोजगार दे दिया जाता है

रेशमी ज़िल्दों में जकड़ा इतिहास
पुस्तकालयों के अंधेरे परित्यक्त कोनों में
धीरे-धीरे तोड़ रहा है दम
एक नये इतिहास के निर्माण के लिए
मेरी आँखों पर पट्टियां बाँध
पीठ पर गोला बारूद लाद
छोड़ दिया गया है मुझे
एक जंगल के बीचों-बीच

सच
ये बत्तीस बरस
मेरी चेतना को दाग रहे हैं
बत्तीस गर्म सलाखों की तरह.