भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हर जी का हयात है / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: हर जी हयात का, है सबब जो हयात का निकले है जी उसी के लिए, कायनात का बि...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' | ||
+ | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
हर जी हयात का, है सबब जो हयात का | हर जी हयात का, है सबब जो हयात का | ||
निकले है जी उसी के लिए, कायनात का | निकले है जी उसी के लिए, कायनात का |
23:21, 21 फ़रवरी 2009 का अवतरण
हर जी हयात का, है सबब जो हयात का
निकले है जी उसी के लिए, कायनात का
बिखरे है जुल्फ, उस रूख-ए-आलम फरोज पर
वर्न:, बनाव होवे न दिन और रात का
उसके फरोग-ए-हुस्न से, झमके है सब में नूर
शम्-ए-हरम हो या कि दिया सोमनात का
क्या मीर तुझ को नाम: सियाही की फिक्र है
खत्म-ए-रूसुल सा शख्स है, जामिन नजात का