भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदलाव / सुधा ओम ढींगरा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> सूखे पत्तों को उड़ते देख ऋतु ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
 
सूखे पत्तों को
 
सूखे पत्तों को
 
उड़ते देख
 
उड़ते देख

05:51, 27 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण


सूखे पत्तों को
उड़ते देख
ऋतु ने
प्रश्न किया--
क्या तुम्हें
मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?

पत्तों ने कहा--
हम तो
बूढ़े,
बेकार
हो गए.
सोचा,
क्यों ना
बिखर कर
राख हों जायें.

इसी
बहाने
अपनी जननी से
मिलने की ललक
पूर्ण हो जाए.

शायद
उसके
नव प्रजन्न में
सहायक हो सकें.

सुनते ही
ऋतु भी
इठलाती
रंग बदलने लगी.