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"अपने ही परिवेश से अंजान है / साग़र पालमपुरी" के अवतरणों में अंतर
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अपने ही परिवेश से अंजान है | अपने ही परिवेश से अंजान है | ||
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कितना बेसुध आज का इन्सान है | कितना बेसुध आज का इन्सान है | ||
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हर डगर मिलते हैं बेचेहरा—से लोग | हर डगर मिलते हैं बेचेहरा—से लोग | ||
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अपनी सूरत की किसे पहचान है | अपनी सूरत की किसे पहचान है | ||
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भावना को मौन का पहनाओ अर्थ | भावना को मौन का पहनाओ अर्थ | ||
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मन की कहने में बड़ा नुकसान है | मन की कहने में बड़ा नुकसान है | ||
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चाँद पर शायद मिले ताज़ा हवा | चाँद पर शायद मिले ताज़ा हवा | ||
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क्योंकि आबादी यहाँ गुंजान है | क्योंकि आबादी यहाँ गुंजान है | ||
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कामनाओं के वनों में हिरण—सा | कामनाओं के वनों में हिरण—सा | ||
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यह भटकता मन चलायेमान है | यह भटकता मन चलायेमान है | ||
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नाव मन की कौन —से तट पर थमे | नाव मन की कौन —से तट पर थमे | ||
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हर तरफ़ यादों का इक तूफ़ान है | हर तरफ़ यादों का इक तूफ़ान है | ||
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आओ चलकर जंगलों में जा बसें | आओ चलकर जंगलों में जा बसें | ||
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साँस का चलना ही जीवन तो नहीं | साँस का चलना ही जीवन तो नहीं | ||
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सोच बिन हर आदमी बेजान है | सोच बिन हर आदमी बेजान है | ||
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खून से ‘साग़र’! लिखेंगे हम ग़ज़ल | खून से ‘साग़र’! लिखेंगे हम ग़ज़ल | ||
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जान में जब तक हमारी जान है | जान में जब तक हमारी जान है | ||
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16:41, 27 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण
अपने ही परिवेश से अंजान है
कितना बेसुध आज का इन्सान है
हर डगर मिलते हैं बेचेहरा—से लोग
अपनी सूरत की किसे पहचान है
भावना को मौन का पहनाओ अर्थ
मन की कहने में बड़ा नुकसान है
चाँद पर शायद मिले ताज़ा हवा
क्योंकि आबादी यहाँ गुंजान है
कामनाओं के वनों में हिरण—सा
यह भटकता मन चलायेमान है
नाव मन की कौन —से तट पर थमे
हर तरफ़ यादों का इक तूफ़ान है
आओ चलकर जंगलों में जा बसें
शहर की तो हर गली वीरान है
साँस का चलना ही जीवन तो नहीं
सोच बिन हर आदमी बेजान है
खून से ‘साग़र’! लिखेंगे हम ग़ज़ल
जान में जब तक हमारी जान है