भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाल—ए—दिल जिनसे कहने की थी आरज़ू / साग़र पालमपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} Category:ग़ज़ल हाल—ए—दिल जिनसे क...) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
− | + | हाल-ए-दिल जिनसे कहने की थी आरज़ू | |
− | वो मिले तो हमीं से लगे | + | वो मिले तो हमीं से लगे हू-ब-हू |
जिस्म के बन के भीतर ही था वो कहीं | जिस्म के बन के भीतर ही था वो कहीं | ||
− | जिसको ढूँढा किये | + | जिसको ढूँढा किये दर-ब-दर , कू-ब-कू |
पंक्ति 20: | पंक्ति 20: | ||
− | फूल यादों के जो | + | फूल यादों के जो सेह्न-ए-दिल में खिले |
− | एक ख़ुश्बू | + | एक ख़ुश्बू-सी बिखरा गये चार सू |
17:53, 27 फ़रवरी 2009 का अवतरण
हाल-ए-दिल जिनसे कहने की थी आरज़ू
वो मिले तो हमीं से लगे हू-ब-हू
जिस्म के बन के भीतर ही था वो कहीं
जिसको ढूँढा किये दर-ब-दर , कू-ब-कू
करके इक बात ही रूह में आ बसा
कितनी दिलकश थी उस शख़्स की गुफ़्तगू
फूल यादों के जो सेह्न-ए-दिल में खिले
एक ख़ुश्बू-सी बिखरा गये चार सू
सुर्ख़ चेहरों में ‘साग़र’ ! न ढूँढो मुझे
मेरी ग़ज़लों में है मेरे दिल का लहू