भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कैसा आया काल / सौरभ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौरभ |संग्रह=कभी तो खुलेगा / सौरभ }} <Poem> धुँध कोहरे...)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:10, 28 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण

धुँध कोहरे से भरी धरती
दिन में हो गई रात
पँछी दुबके घोंसलों में
कैसा आया काल
धरती हुई लाल बिना महाभारत
रक्षक बने भक्षक
कौए करें गुटरगूँ
घोड़े खाएँ घास
पँछी-पँछी को खाए
इन्सान खाए इन्सान।