भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दौड़ती हांफ़ती सोचती जिंदगी / सतपाल 'ख़याल'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
दिल उसारे महल सर पे छ्त भी नहीं | दिल उसारे महल सर पे छ्त भी नहीं | ||
− | दिल से अब पेट पर आ गयी | + | दिल से अब पेट पर आ गयी ज़िन्दगी |
</poem> | </poem> |
18:28, 1 मार्च 2009 के समय का अवतरण
दौड़ती हाँफ़ती सोचती ज़िन्दगी
हर तरफ़ हर जगह हर गली ज़िन्दगी
हर तरफ़ है धूल है धूप है दोस्तो
धूल और धूप में खाँसती ज़िन्दगी
लब हिलें कुछ कहे कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िन्दगी
दिल उसारे महल सर पे छ्त भी नहीं
दिल से अब पेट पर आ गयी ज़िन्दगी