भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उमीदें जब भी दुनिया से लगाता है! / धीरज आमेटा ‘धीर’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’ }} <poem> उमीदें जब भी दुनिया से लग...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:57, 4 मार्च 2009 का अवतरण
उमीदें जब भी दुनिया से लगाता है,
दिल ए नादाँ फ़क़त धोखे ही खाता है!
ये दिल कम्बख्त जब रोने पर आता है,
ज़रा सी बात पर दरिया बहाता है!
जो पैराहन तले निश्तर छिपाता है,
लहू इक दिन वो अपना ही बहाता है!
वो बचपन में तुझे उंगली थमाता था,
जिसे तू आज बैसाखी थमाता है!
जुदा है क़ाफ़िले से रह्गुज़र जिस की,
वो ही इक दिन नया रस्ता दिखाता है!
तुम्हारा चूमना पेशानी को मेरी,
मिरे माथे की हर सल्वट मिटाता है!