"आगत का स्वागत / कीर्ति चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | कवियत्री: [[कीर्ति चौधरी]] | ||
+ | [[Category:कविताएँ]] | ||
+ | [[Category:कीर्ति चौधरी]] | ||
+ | |||
+ | ~*~*~*~*~**~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
+ | |||
मुँह ढाँक कर सोने से बहुत अच्छा है, | मुँह ढाँक कर सोने से बहुत अच्छा है, | ||
पंक्ति 35: | पंक्ति 41: | ||
माँगने से जाने क्या दे जाए। | माँगने से जाने क्या दे जाए। | ||
− | + | नहीं तो स्वर्ग से निर्वासित, | |
− | + | किसी अप्सरा को ही, | |
− | + | यहाँ आश्रय दीख पड़े। | |
खुले हुए द्वार से बड़ी संभावनाएँ हैं मित्र! | खुले हुए द्वार से बड़ी संभावनाएँ हैं मित्र! | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 58: | ||
मुँह ढाँक कर सोने से बहुत बेहतर है। | मुँह ढाँक कर सोने से बहुत बेहतर है। | ||
− | |||
− | |||
− |
09:24, 21 अगस्त 2006 का अवतरण
कवियत्री: कीर्ति चौधरी
~*~*~*~*~**~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
मुँह ढाँक कर सोने से बहुत अच्छा है,
कि उठो ज़रा,
कमरे की गर्द को ही झाड़ लो।
शेल्फ़ में बिखरी किताबों का ढेर,
तनिक चुन दो।
छितरे-छितराए सब तिनकों को फेंको।
खिड़की के उढ़के हुए,
पल्लों को खोलो।
ज़रा हवा ही आए।
सब रौशन कर जाए।
... हाँ, अब ठीक
तनिक आहट से बैठो,
जाने किस क्षण कौन आ जाए।
खुली हुई फ़िज़ाँ में,
कोई गीत ही लहर जाए।
आहट में ऐसे प्रतीक्षातुर देख तुम्हें,
कोई फ़रिश्ता ही आ पड़े।
माँगने से जाने क्या दे जाए।
नहीं तो स्वर्ग से निर्वासित,
किसी अप्सरा को ही,
यहाँ आश्रय दीख पड़े।
खुले हुए द्वार से बड़ी संभावनाएँ हैं मित्र!
नहीं तो जाने क्या कौन,
दस्तक दे-देकर लौट जाएँगे।
सुनो,
किसी आगत की प्रतीक्षा में बैठना,
मुँह ढाँक कर सोने से बहुत बेहतर है।