भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[गुलज़ार]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:गुलज़ार]]
+
|रचनाकार=गुलज़ार
 
+
|संग्रह = 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
}}
 
+
 
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
 
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
 
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ <br>
 
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ <br>
पंक्ति 16: पंक्ति 15:
 
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले <br>
 
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले <br>
 
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
 
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं <br>
नज़र समेते हुए खड़ा हूँ <br><br>
+
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ <br><br>

19:29, 11 मार्च 2009 के समय का अवतरण

क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ
जुनूँ ये मजबूर कर रहा है पलट के देखूँ
ख़ुदी ये कहती है मोड़ मुड़ जा
अगरचे एहसास कह रहा है
खुले दरीचे के पीछे दो आँखें झाँकती हैं
अभी मेरे इंतज़ार में वो भी जागती है
कहीं तो उस के गोशा-ए-दिल में दर्द होगा
उसे ये ज़िद है कि मैं पुकारूँ
मुझे तक़ाज़ा है वो बुला ले
क़दम उसी मोड़ पर जमे हैं
नज़र समेटे हुए खड़ा हूँ