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"दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

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दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई <br>
 
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जैसे एहसान उतारता है कोई <br><br>
 
जैसे एहसान उतारता है कोई <br><br>

19:31, 11 मार्च 2009 का अवतरण

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

पक गया है शज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछलता है कोई

फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुम को शायद मुघालता है कोई

देर से गूँजतें हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई