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बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके।<br><br>
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’<br>
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की<br>
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी<br>
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’<br>
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढ़रकेढरके<br>
मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के।<br>
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