भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कर लिए मैंने मुहब्बत में अना के टुकड़े / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द गुलशन |संग्रह= }} <Poem> कर लिए मैंने मौहब्बत...) |
|||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
टूटने से मेरी बच जाए ये साँसों की लड़ी | टूटने से मेरी बच जाए ये साँसों की लड़ी | ||
− | मुझको मिल जाएँ | + | मुझको मिल जाएँ कहीं से जो दुआ के टुकड़े |
</poem> | </poem> |
22:18, 28 मार्च 2009 का अवतरण
कर लिए मैंने मौहब्बत में अना के टुकड़े
रह गए पास मेरे मेरी वफ़ा के टुकड़े
रूठने की उसे आदत थी मनाने की मुझे
आ गए मुझमें भी कुछ उसकी अदा के टुकड़े
रौशनी पर कोई तलवार नहीं चल सकती
चाहे कर दीजिए कितने भी ज़िया के टुकड़े
ये तो मालूम नहीं कितनी सज़ा है लेकिन
और कम हो गए कुछ अपनी सज़ा के टुकड़े
डूबने वाले को इक चाह यही रहती है
काश! मिल जाएँ कुछ ऎसे में हवा के टुकड़े
उसने एक बार कभी दिल से पुकारा था मुझे
आज भी गूँज रहे हैं वो सदा के टुकड़े
आंधियाँ चलती रहीं उड़ते रहे पैराहन
दूर होते रहे जिस्मों से हया के टुकड़े
टूटने से मेरी बच जाए ये साँसों की लड़ी
मुझको मिल जाएँ कहीं से जो दुआ के टुकड़े