भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धुरि भरे अति सोहत स्याम जू / रसखान" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
  
धुरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
+
धूरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
  
 
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥
 
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥

10:44, 2 अक्टूबर 2006 का अवतरण

लेखक: रसखान

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

धूरि भरे अति सोहत स्याम जू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।

खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनी बाजति, पीरी कछोटी॥

वा छबि को रसखान बिलोकत, वारत काम कला निधि कोटी।

काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सों लै गयो माखन रोटी॥