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"संशय / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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जब निकट होगा तुम्हारा बिन बुलाया अंत<br>
 
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आ रहा होगा विगत सुस्पष्ट तुमको याद<br>
 
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मन तुम्हारा स्वस्थ होगा बहु-दिनो के बाद<br>
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टंग गयी होंगी तुम्हारी पुतलियाँ निर्धूम<br>
 
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ऐंठती होगी तुम्हारी जीभ मुँह में घूम<br>
 
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कुछ कहोगे उस समय कोई सुसज्जित बात<br>
 
कुछ कहोगे उस समय कोई सुसज्जित बात<br>
 
या कहोगे - बीत जाने दो ना ये भी रात<br><br>
 
या कहोगे - बीत जाने दो ना ये भी रात<br><br>

01:04, 10 मई 2007 का अवतरण

लेखक: रघुवीर सहाय

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तुम अप्रस्तुत ही रहोगे क्या मरण-पर्यन्त?
जब निकट होगा तुम्हारा बिन बुलाया अंत
आ रहा होगा विगत सुस्पष्ट तुमको याद
मन तुम्हारा स्वस्थ होगा बहु-दिनों के बाद
टंग गयी होंगी तुम्हारी पुतलियाँ निर्धूम
ऐंठती होगी तुम्हारी जीभ मुँह में घूम
कुछ कहोगे उस समय कोई सुसज्जित बात
या कहोगे - बीत जाने दो ना ये भी रात