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"कुछ देर / व्योमेश शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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01:51, 11 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी दाहिनी भौं से ज़रा ऊपर

जैसे किसी चोट का लाल निशान था

तुम सो रही थी

और वो निशान ख़ुद से जुडे सभी सवालों के साथ

मेरी नींद में

मेरे जागरण की नींद में

चला आया है

इसे तकलीफ या ऐसा ही कुछ कह पाने से पहले

रोज़ की तरह

सुबह हो जाती है


सुबह हुई तो वह निशान वहाँ नहीं था

वह वहाँ था जहाँ उसे होना था

लोगों ने बताया: तुम्हारे दाहिने हाथ में काले रंग की जो चूड़ी है

उसी का दाग रहा होगा

या कहीं ठोकर लग गई हो हल्की

या मच्छर ने काट लिया हो

और ऐसे दागों का क्या है; हैं, हैं, नहीं हैं, नहीं हैं

और ये सब होता रहता है

यों, वो ज़रा सा लाल रंग

कहीं किसी और रंग में घुल गया है


हालाँकि तब से कहीं पहुँचने में मुझे कुछ देर हो जा रही है