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"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - २" के अवतरणों में अंतर

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मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर  
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नाम रूप पद बोध विसर्जित कर सच्चामय बन मधुकर  
मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर  
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मनोराज्य में ही रम सुखमय झर झर झर झरता निर्झर  
मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर
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सच्चे प्रियतम के कर में रख पंकिल प्राणों की वीणा
टेर रहा है उरविहारिणी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।11।।
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टेर रहा अमन्दगुंजरिता मुरली  तेरा    मुरलीधर।।6।।
  
विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर  
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यत्किंचित जो भी तेरा है उसका ही कर दे मधुकर  
कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर  
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करता रहे तुम्हें नित सिंचित प्रभुपद कंज विमल निर्झर  
वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी
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मलिन मोह आवरण भग्न कर करले प्रेम भरित अंतर
टेर रहा सर्वांतरात्मिका मुरली  तेरा    मुरलीधर।।12।।
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टेर रहा हे भुवनमोहिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।7।।
  
मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर  
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मनोराज्य में देख पुश्पिता उसकी तरुलतिका मधुकर  
तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झर  
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उसकी मनहर भावभरी भ्रमरी तितली सरणी निर्झर  
युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल
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स्नेह सुरभि बांटता सलोना मनभावन बंशीवाला
टेर रहा है मन्मथमथिनी मुरली तेरा   मुरलीधर।।13।।
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टेर रहा है अमृतसंश्रया मुरली  तेरा    मुरलीधर।।8।।
  
सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर  
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तुम्हें पुकार मधुर वाणी में बार बार मोहन मधुकर  
युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर  
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कर्णपुटों में ढाल रहा है वह आनन्दामृत निर्झर  
भरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर
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कहां गया संबोधनकर्ता विकल प्राण कर अन्वेषण
टेर रहा है नादविग्रहा मुरली  तेरा    मुरलीधर।।14।।
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टेर रहा है आत्मविग्रहा मुरली  तेरा    मुरलीधर।।9।।
  
माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर
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रंग रंग की राग रागिनी छेड बांसुरी में मधुकर  
लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर
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बूंद बूंद में उतर प्रीति का सिंधु बन गया रस निर्झर  
उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस की गगरी
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तुम्हें बहुत चाहता तुम्हारा वह प्यारा सच्चा प्रियतम
टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली  तेरा    मुरलीधर।।15।।
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टेर रहा सरसारसवंती मुरली  तेरा    मुरलीधर।।10।।
 
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गहन तिमिर में दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकर  
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मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर
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तथा मृतक काया में पंकिल भर नव श्वाँसों का स्पंदन
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टेर रहा है नित्य नूतना  मुरली तेरा मुरलीधर।।16।।
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लघु जलकणिका को बाहों के पलने में ले ले मधुकर
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हलराता दुलराता रहता ज्यों अविराम सिंधु निर्झर
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बिन्दु बिन्दु में प्रतिपल स्पंदित तथा तुम्हारा रत्नाकर
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टेर रहा है स्वजनादरिणी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।17।।
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चिन्तित सोच विगत वासर क्यों व्यथित सोच भावी मधुकर
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प्रवहित निशि वासर अनुप्राणित नित्य नवल जीवन निर्झर
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पल पल जीवन रसास्वाद का तुम्हें भेंज कर आमंत्रण
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टेर रहा है प्रियागुणाढ्या मुरली  तेरा    मुरलीधर।।18।।
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गत स्मृतियों को जोड जोड क्यों दौड रहा मोहित मधुकर 
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सुधा नीरनिधि छोड बावरे मरता चाट गरल निर्झर
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फंस किस आशा अभिलाषा में व्यर्थ काटता दिन पंकिल
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टेर रहा है मधुरमाधवी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।19।।
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गूँथ प्राणमाला मतवाला आनेवाला है मधुकर
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अति समीप आसीन तुम्हारे ही तो तेरा रस निर्झर
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बड़भागिनी तुम्हें कर देगा ललित अंक ले वनमाली
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टेर रहा है मनोहारिणी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।20।।
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15:10, 16 अप्रैल 2009 का अवतरण

 
 
नाम रूप पद बोध विसर्जित कर सच्चामय बन मधुकर
मनोराज्य में ही रम सुखमय झर झर झर झरता निर्झर
सच्चे प्रियतम के कर में रख पंकिल प्राणों की वीणा
टेर रहा अमन्दगुंजरिता मुरली तेरा मुरलीधर।।6।।

यत्किंचित जो भी तेरा है उसका ही कर दे मधुकर
करता रहे तुम्हें नित सिंचित प्रभुपद कंज विमल निर्झर
मलिन मोह आवरण भग्न कर करले प्रेम भरित अंतर
टेर रहा हे भुवनमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।7।।

मनोराज्य में देख पुश्पिता उसकी तरुलतिका मधुकर
उसकी मनहर भावभरी भ्रमरी तितली सरणी निर्झर
स्नेह सुरभि बांटता सलोना मनभावन बंशीवाला
टेर रहा है अमृतसंश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।8।।

तुम्हें पुकार मधुर वाणी में बार बार मोहन मधुकर
कर्णपुटों में ढाल रहा है वह आनन्दामृत निर्झर
कहां गया संबोधनकर्ता विकल प्राण कर अन्वेषण
टेर रहा है आत्मविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।9।।

रंग रंग की राग रागिनी छेड बांसुरी में मधुकर
बूंद बूंद में उतर प्रीति का सिंधु बन गया रस निर्झर
तुम्हें बहुत चाहता तुम्हारा वह प्यारा सच्चा प्रियतम
टेर रहा सरसारसवंती मुरली तेरा मुरलीधर।।10।।