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− | + | सबसे सकता भाग स्वयं से भाग कहाँ सकता मधुकर | |
− | + | भाग भाग कर रीता ही रीता रह जायेगा निर्झर | |
− | + | कुछ होने कुछ पा जाने की आशा में बॅंध मर न विकल | |
− | टेर रहा | + | टेर रहा स्वात्मानुशिलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।26।। |
− | + | यदि तोड़ना मूढ़ कुछ है तो तोड़ स्वमूर्च्छा ही मधुकर | |
− | + | जड़ताओं के तृण तरु दल से रुद्ध प्राण जीवन निर्झर | |
− | + | शुचि जागरण सुमन परिमल से सुरभित कर जीवन पंकिल | |
− | टेर रहा | + | टेर रहा है पूर्णानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर।।27।। |
− | + | क्या ‘मैं’ के अतिरिक्त उसे तूँ अर्पित कर सकता मधुकर | |
− | + | शेष तुम्हारे पास छोड़ने को क्या बचा विषय निर्झर | |
− | + | ‘मैं’ का केन्द्र बचा कर पंकिल कुछ देना भी क्या देना | |
− | टेर रहा | + | टेर रहा अहिअहंमर्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।28।। |
− | + | किसे मिटाने चला स्वयं का ‘मैं’ ही मार मलिन मधुकर | |
− | + | एकाकार तुम्हारा उसका फिर हो जायेगा निर्झर | |
− | + | शब्द शून्यता में सुन कैसी मधुर बज रही है वंशी | |
− | टेर रहा | + | टेर रहा विक्षेपनिरस्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।29।। |
− | + | क्षुधा पिपासा व्याधि व्यथा विभुता विपन्नता में मधुकर | |
− | + | स्पर्श कर रहा वही परमप्रिय सच्चा विविध वर्ण निर्झर | |
− | + | वही वही संकल्पधनी है सतरंगी झलमल झलमल | |
− | + | टेर रहा है सर्वगोचरा मुरली तेरा मुरलीधर।।30।। | |
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15:15, 16 अप्रैल 2009 का अवतरण
सबसे सकता भाग स्वयं से भाग कहाँ सकता मधुकर
भाग भाग कर रीता ही रीता रह जायेगा निर्झर
कुछ होने कुछ पा जाने की आशा में बॅंध मर न विकल
टेर रहा स्वात्मानुशिलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।26।।
यदि तोड़ना मूढ़ कुछ है तो तोड़ स्वमूर्च्छा ही मधुकर
जड़ताओं के तृण तरु दल से रुद्ध प्राण जीवन निर्झर
शुचि जागरण सुमन परिमल से सुरभित कर जीवन पंकिल
टेर रहा है पूर्णानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर।।27।।
क्या ‘मैं’ के अतिरिक्त उसे तूँ अर्पित कर सकता मधुकर
शेष तुम्हारे पास छोड़ने को क्या बचा विषय निर्झर
‘मैं’ का केन्द्र बचा कर पंकिल कुछ देना भी क्या देना
टेर रहा अहिअहंमर्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।28।।
किसे मिटाने चला स्वयं का ‘मैं’ ही मार मलिन मधुकर
एकाकार तुम्हारा उसका फिर हो जायेगा निर्झर
शब्द शून्यता में सुन कैसी मधुर बज रही है वंशी
टेर रहा विक्षेपनिरस्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।29।।
क्षुधा पिपासा व्याधि व्यथा विभुता विपन्नता में मधुकर
स्पर्श कर रहा वही परमप्रिय सच्चा विविध वर्ण निर्झर
वही वही संकल्पधनी है सतरंगी झलमल झलमल
टेर रहा है सर्वगोचरा मुरली तेरा मुरलीधर।।30।।