भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुरली तेरा मुरलीधर / प्रेम नारायण 'पंकिल' / पृष्ठ - ७" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ }} <poem> आह्लादित अंतर वसुंध...)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
<poem>  
 
<poem>  
 
   
 
   
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकर  
+
श्वाँस श्वाँस में रमा वही सब हलन चलन तेरी मधुकर  
भावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झर  
+
यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का निर्झर  
पिन्हा ग्रीव में आत्मसमर्पण कर होती कृतार्थ धरणी
+
वही प्रेरणा क्षमता ममता प्रीति पुलक उल्लास वही
टेर रहा सर्वस्वस्वीकृता  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।61।।
+
टेर रहा है व्यक्ताव्यक्ता मुरली  तेरा    मुरलीधर।।31।।
  
अगरु धूम से उड़े जा रहे अम्बर में जलधर मधुकर  
+
कर्णफूल दृग द्युति वह तेरी सिंदूरी रेखा मधुकर  
सुर धनु की पहना देते उसको  चपला माला निर्झर
+
वही हृदय माला प्राणों की वीणा की झंकृति निर्झर  
नीर बरस कर अर्घ्य आरती करती घन विद्युत माला
+
वही सत्य का सत्य तुम्हारे जीवन का भी वह जीवन
टेर रहा मधुरामनुहारा  मुरली   तेरा   मुरलीधर।।62।।
+
टेर रहा है परमानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर ।। 32।।
  
तुच्छ कह ठुकराना वाला वह तेरा अर्पण मधुकर  
+
रह लटपट उसको पलकों की ओट होने दे मधुकर  
लघु पद सरिता को भी उर में भरता विशद सिंधु निर्झर  
+
मिलन गीत गाता लहराता बहा जा रहा रस निर्झर  
लतिकाओं की वेदी में खेला करते लघु ललित सुमन
+
तुम उसकी हो प्राणप्रिया परमातिपरम सौभाग्य यही
टेर रहा प्रतिकणक्षणपर्वा  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।63।।
+
टेर रहा है हृदयोल्लासिनि मुरली  तेरा    मुरलीधर।।33।।
  
जड़ पारसमणि छू लोहा भी कुंदन हो जाता मधुकर  
+
मृदुल मृणाल भाव अंगुलि से छू मन प्राण बोध मधुकर  
प्राणनाथ सच्चा प्रियतम तो परम चेतना का निर्झर  
+
रोम रोम में लहरा देता वह अचिंत्य लीला निर्झर  
स्नेहमयी ममता से तुमको सटा हृदय से हृदयेश्वर
+
मधुराधर स्वर सुना विहॅंसता वह प्रसन्न मुख वनमाली
टेर रहा परिवर्तनप्राणा मुरली  तेरा    मुरलीधर।।64।।
+
टेर रहा है सर्वमंगला मुरली  तेरा    मुरलीधर।।34।।
  
भले चपल अलि कुटिल कलुषमय पर उसका ही तू मधुकर  
+
नारकीय योनियाँ अनेकों रौरव नर्क पीर मधुकर
सभी निर्धनों का धन वह सब असहायों का बल निर्झर
+
उसके संग संग ले सह ले सब उसका लीला निर्झर  
लांछित होकर भी न हिरण को कभीं त्याग देता हिमकर
+
रहना कहीं बनाये रखना उसको आँखों का अंजन
टेर रहा स्वजनाश्रयशीला  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।65।।
+
टेर रहा है सर्वशिखरिणी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।35।।
 
+
अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकर
+
जब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झर
+
उसका कौन पता बतलाये नाम रुप गति अकथ कथा
+
टेर रहा करुणासाध्या  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।66।।
+
 
+
क्या कण कण वासी अनन्त का अन्वेषण संभव मधुकर
+
स्वयं भावना समझ करुण वह पास उतर आता निर्झर  
+
चन्द्र दिवाकर स्वयं कृपाकर करते ज्योर्तिमय त्रिभुवन
+
टेर रहा स्वजनांकमालिका  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।67।।
+
 
+
तृषित चंचु चातक तुम सच्चा स्वाति मेघ माला मधुकर
+
तुम पतझर पूरित कानन वह प्रियतम वासंती निर्झर
+
तुम चकोर वह चंद्र मयूरी तुम वह श्रावण जलज सजल
+
टेर रहा अंतराकर्षिणी  मुरली  तेरा    मुरलीधर।।68।।
+
 
+
रोता गगन बिलखती धरती दहक रहा पावक मधुकर
+
उबल रहा पाथोधि प्रकम्पित मारुत का अंतर निर्झर
+
उद्वेलित वन खग पुकारते वह सच्चा प्राणेश कहाँ
+
टेर रहा है पीरप्रणयिनी मुरली  तेरा    मुरलीधर।।69।।
+
 
+
प्रभु तुमको जानते अपर फिर जाने मत जाने मधुकर
+
तेरा सच्चा से परिचय फिर मिले न मिले अपर निर्झर
+
उस हृदयस्थ परम प्रियतम की चरण शरण ही कल्याणी
+
टेर रहा करुणापयोधरा मुरली  तेरा    मुरलीधर।।70।।
+
 
</poem>
 
</poem>

15:16, 16 अप्रैल 2009 का अवतरण

 
 
श्वाँस श्वाँस में रमा वही सब हलन चलन तेरी मधुकर
यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का निर्झर
वही प्रेरणा क्षमता ममता प्रीति पुलक उल्लास वही
टेर रहा है व्यक्ताव्यक्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।31।।

कर्णफूल दृग द्युति वह तेरी सिंदूरी रेखा मधुकर
वही हृदय माला प्राणों की वीणा की झंकृति निर्झर
वही सत्य का सत्य तुम्हारे जीवन का भी वह जीवन
टेर रहा है परमानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर ।। 32।।

रह लटपट उसको पलकों की ओट न होने दे मधुकर
मिलन गीत गाता लहराता बहा जा रहा रस निर्झर
तुम उसकी हो प्राणप्रिया परमातिपरम सौभाग्य यही
टेर रहा है हृदयोल्लासिनि मुरली तेरा मुरलीधर।।33।।

मृदुल मृणाल भाव अंगुलि से छू मन प्राण बोध मधुकर
रोम रोम में लहरा देता वह अचिंत्य लीला निर्झर
मधुराधर स्वर सुना विहॅंसता वह प्रसन्न मुख वनमाली
टेर रहा है सर्वमंगला मुरली तेरा मुरलीधर।।34।।

नारकीय योनियाँ अनेकों रौरव नर्क पीर मधुकर
उसके संग संग ले सह ले सब उसका लीला निर्झर
रहना कहीं बनाये रखना उसको आँखों का अंजन
टेर रहा है सर्वशिखरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।35।।