"जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को / भजन" के अवतरणों में अंतर
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+ | जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को | ||
+ | मिल जाये तरुवर कि छाया | ||
+ | ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है | ||
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+ | ऐसा ही सुख ... | ||
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− | + | राघव कृपा हो जो तेरी | |
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− | + | जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी | |
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− | + | जैसे सावन का संदेस पाया | |
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− | ऐसा ही सुख ... | + | |
− | जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो | + | जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो |
− | उस पर कदम मैं बढ़ाऊं | + | उस पर कदम मैं बढ़ाऊं |
− | फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में | + | फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में |
− | मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं | + | मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं |
− | पानी के प्यासे को तक़दीर ने | + | पानी के प्यासे को तक़दीर ने |
− | जैसे जी भर के अमृत पिलाया | + | जैसे जी भर के अमृत पिलाया |
ऐसा ही सुख ... | ऐसा ही सुख ... | ||
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20:04, 17 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम
भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...
शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी
युग- युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...
जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख ...