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"उठ जाग मुसाफिर भोर भई / भजन" के अवतरणों में अंतर

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उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है  
 
उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है  

20:08, 17 अप्रैल 2009 का अवतरण

उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहाँ जो तू सोवत है
जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है वो खोवत है

खोल नींद से अँखियाँ जरा और अपने प्रभु से ध्यान लगा
यह प्रीति करन की रीती नहीं प्रभु जागत है तू सोवत है.... उठ ...

जो कल करना है आज करले जो आज करना है अब करले
जब चिडियों ने खेत चुग लिया फिर पछताये क्या होवत है... उठ ...

नादान भुगत करनी अपनी ऐ पापी पाप में चैन कहाँ
जब पाप की गठरी शीश धरी फिर शीश पकड़ क्यों रोवत है... उठ ....