भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार / भजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKBhaktiKavya |रचनाकार= }} नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥<br><br> साहिब तुम ...) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {{ | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKBhajan | ||
|रचनाकार= | |रचनाकार= | ||
}} | }} |
20:11, 17 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं ।
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥
मैन अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ।
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार ।
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ ।
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥
गुरु बिन कैसे लागे पार