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"भगवान तुम्हारे मन्दिर में.../ भजन" के अवतरणों में अंतर

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भगवान तुम्हारे मन्दिर में, मैं तुम्हें रिझाने आई हूँ ।
 
भगवान तुम्हारे मन्दिर में, मैं तुम्हें रिझाने आई हूँ ।
 
 
वाणी में है माधुर्य नहीं, पर विनय सुनाने आई हूँ ।।
 
वाणी में है माधुर्य नहीं, पर विनय सुनाने आई हूँ ।।
  
 
पूजा के लिए न पास फूल, फिर भी तो साहस देखो ।
 
पूजा के लिए न पास फूल, फिर भी तो साहस देखो ।
 
 
सब के सन्मुख पानी होकर, मैं तुम्हें मनाने आई हूँ ।।
 
सब के सन्मुख पानी होकर, मैं तुम्हें मनाने आई हूँ ।।
  
 
प्रभु का चरणामृत लेने को, दासी पर है जलपात्र नहीं ।
 
प्रभु का चरणामृत लेने को, दासी पर है जलपात्र नहीं ।
 
 
केवल अपना यह हृदय खोल, सब बन्ध दिखाने आई हूँ ।।
 
केवल अपना यह हृदय खोल, सब बन्ध दिखाने आई हूँ ।।
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20:17, 17 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

भगवान तुम्हारे मन्दिर में, मैं तुम्हें रिझाने आई हूँ ।
वाणी में है माधुर्य नहीं, पर विनय सुनाने आई हूँ ।।

पूजा के लिए न पास फूल, फिर भी तो साहस देखो ।
सब के सन्मुख पानी होकर, मैं तुम्हें मनाने आई हूँ ।।

प्रभु का चरणामृत लेने को, दासी पर है जलपात्र नहीं ।
केवल अपना यह हृदय खोल, सब बन्ध दिखाने आई हूँ ।।