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"पद / भारतेंदु हरिश्चंद्र" के अवतरणों में अंतर

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तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !!
 
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !!
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हमहु सब जानति लोक की चालनि, क्यौं इतनौ बतरावति हौ।<br>
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हित जामै हमारो बनै सो करौ, सखियाँ तुम मेरी कहावती हौ॥<br>
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'हरिचंद जु' जामै न लाभ कछु, हमै बातनि क्यों बहरावति हौ।<br>
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सजनी मन हाथ हमारे नहीं, तुम कौन कों का समुझावति हौ॥<br>
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ऊधो जू सूधो गहो वह मारग, ज्ञान की तेरे जहाँ गुदरी है।<br>
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कोऊ नहीं सिख मानिहै ह्याँ, इक श्याम की प्रीति प्रतीति खरी है॥<br>
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ये ब्रजबाला सबै इक सी, 'हरिचंद जु' मण्डलि ही बिगरी है।<br>
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एक जो होय तो ज्ञान सिखाइये, कूप ही में इहाँ भाँग परी है॥

19:59, 4 जून 2008 का अवतरण


1


तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !

इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनो जोरा जोरी !

छोड़ि देई कि बंद चोलिया, पकरैं चोर हम अपनो री !

"हरीचन्द" इन दोउन मेरी, नाहक कीनी चितचोरी !

तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !!


2


हमहु सब जानति लोक की चालनि, क्यौं इतनौ बतरावति हौ।
हित जामै हमारो बनै सो करौ, सखियाँ तुम मेरी कहावती हौ॥
'हरिचंद जु' जामै न लाभ कछु, हमै बातनि क्यों बहरावति हौ।
सजनी मन हाथ हमारे नहीं, तुम कौन कों का समुझावति हौ॥


3


ऊधो जू सूधो गहो वह मारग, ज्ञान की तेरे जहाँ गुदरी है।
कोऊ नहीं सिख मानिहै ह्याँ, इक श्याम की प्रीति प्रतीति खरी है॥
ये ब्रजबाला सबै इक सी, 'हरिचंद जु' मण्डलि ही बिगरी है।
एक जो होय तो ज्ञान सिखाइये, कूप ही में इहाँ भाँग परी है॥