भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हर दिन बड़ा है आपका अपना न एक दिन / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> हर...)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:57, 26 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

 
हर दिन बड़ा है आपका, अपना न एक दिन
सब छूरियाँ ठूँठी पड़ीं, कटता न केक दिन

सूरज बदन प’ झेलता, मौसम की लाठियाँ
बदले मिज़ाज अभ्र का, खोता विवेक दिन

कुछ गालियाँ देकर कभी, कुछ बाट गोलियाँ
तुम छल चुके हमको, सुनो, अब तक अनेक दिन

कुछ हाथ बढ़ रहे इधर, तुमको तराशने
आकाशबेल! खेल लो. जी लो कुछेक दिन

रोटी जहाँ गिरवी धरी, वह जेल तोड़ दें
अब मुक्त करना है हमें, बंदी हरेक दिन