भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आग के व्यापारियों ने बाग़ को झुलसा दिया / ऋषभ देव शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा }} <Poem> आग...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:28, 27 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

 
आग के व्यापारियों ने बाग को झुलसा दिया
और वे दुरबीन से, उठती लपट देखा किए

साधुवेशी तस्करों ने शहर सारा ठग लिया
और वे लवलीन - से सारा कपट देखा किए

साजिशों की सनसनाहट छप गई अखबार में
और वे गमगीन - से खुफिया रपट देखा किए

द्रौपदी दु:शासनों को नोंचती ही रह गई
और वे बलहीन - से छीना-झपट देखा किए

लोग उनसे श्वेतपत्रों के लिए कहते रहे
और वे अतिदीन - से बस श्यामपट देखा किए।