भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लड्डू ले लो / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]] | कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]] | ||
[[Category:कविताएँ]] | [[Category:कविताएँ]] | ||
+ | [[Category:शिशुगीत | ||
[[Category:माखनलाल चतुर्वेदी]] | [[Category:माखनलाल चतुर्वेदी]] | ||
00:38, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण
कवि: माखनलाल चतुर्वेदी[[Category:शिशुगीत
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
ले लो दो आने के चार
लड्डू राज गिरे के यार
यह हैं धरती जैसे गोल
ढुलक पड़ेंगे गोल मटोल
इनके मीठे स्वादों में ही
बन आता है इनका मोल
दामों का मत करो विचार
ले लो दो आने के चार।
लोगे खूब मज़ा लायेंगे
ना लोगे तो ललचायेंगे
मुन्नी, लल्लू, अरुण, अशोक
हँसी खुशी से सब खायेंगे
इनमें बाबू जी का प्यार
ले लो दो आने के चार।
कुछ देरी से आया हूँ मैं
माल बना कर लाया हूँ मैं
मौसी की नज़रें इन पर हैं
फूफा पूँछ रहे क्या दर है
जल्द खरीदो लुटा बजार
ले लो दो आने के चार।