"शादी भी हुई तो कवि से / शैल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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+ | तो भला क्या पाता? | ||
+ | वें बोलीं : "तुम तो कवि हो न | ||
+ | आँसू को मोती | ||
+ | और वेदना को हीरा समझते हो | ||
+ | काश! | ||
+ | एंकम्टैक्स वाले | ||
+ | हमारे यहाँ आते | ||
+ | तो तुम्हारे | ||
+ | हीरे और मोती तो पाते | ||
+ | नोटों की गड्डी न सही | ||
+ | लाख दो लाख | ||
+ | आँसू ही ले जाते।" | ||
+ | हमने कहा:"पगली | ||
+ | किसी को हमारे आँसुओं से | ||
+ | क्या लेना देना | ||
+ | अगर आँसू भी | ||
+ | लेन देन का माध्यम हो गया होता | ||
+ | तो हमारे पास वो भी नहीं होता | ||
+ | ग़रीब की आँखो कि बजाय | ||
+ | तिज़ोरी में बन्द हो गया होता | ||
+ | तिज़ोरी! | ||
+ | जिसमें बन्द है | ||
+ | लहलहाते खेत की मुस्कान | ||
+ | थके हारे होरी का पसीना | ||
+ | मजबूर धनिया का यौवन | ||
+ | सावन का महीना | ||
+ | सिसकती पायल की झंकार | ||
+ | भूकी और बेबस रधिया का प्यार | ||
+ | अनाथालय का चन्दा | ||
+ | और अपनी ही लाश ढोता हुआ | ||
+ | किसी गरीब बच्चे का कन्धा।" | ||
+ | वे बोलीं: "चुप हो जाओ | ||
+ | लाला के रेडिओ से | ||
+ | ऊँचा बोल रहे हो | ||
+ | रेडिओ बिजली से चलता है | ||
+ | उसका क्या बिगडता है | ||
+ | तुम तो ब्लड प्रेशर के मरीज़ हो | ||
+ | अभी पसर जाओगे | ||
+ | फिर तुम जहाँ चीख़ रहे हो | ||
+ | वह कविता का मंच नहीं | ||
+ | तुम्हारे डेढ़ कमरे के शीश महल का | ||
+ | पलस्तर उखड़ा बरामदा है | ||
+ | ब्याह भी हुआ तो कवि से | ||
+ | भगवान जाने | ||
+ | किस्मत में क्या बदा है | ||
+ | इंकमटैक्स देने लायक भी नहीं। " |
20:07, 3 मई 2009 का अवतरण
हमारे पड़ोसी लाला को
बड़ा घमंड था
अपने अलीगढ़ी तालों का
मगर छापा पड़ा
इंकमटैक्स वालो का
तो दो घण्टे में बाहर निकल आया
दाबा हुआ माल
कई सालों का
हमारी श्रीमती जी का
पारा चढ़ गया
बोलीं, "देखा
इंकमटैक्स वाले ने
हमारे घर की तरफ
देखा तक नहीं
और आगे बढ गया
जब से पड़ोसन के यहाँ
छापा पड़ा है
उसके आदमी का सीना
तन गया है
गिरी हुई मूँछे तलवार हो गई है
रेडियो पहले की अपेक्षा
ज़ोर से बजने लगा है
और लाला
हम लोगों को भुक्खड) समझने लगा है
कहता है-जिसके यहाँ
कुछ होगा ही नहीं
उसके यहाँ क्या पड़ेगा
हमारे यहाँ था
इसलिए पड़ गया
जिसके यहाँ कुछ नहीं था
उसके दरवाज़े से आगे बढ़ गया।"
हमने कहा-"लाला ठीक ही तो कहता है
हमारे पास है ही क्या
कविता है, कल्पना है
आँसू है, वेदना है
भावना है, छन्द है
चिंता है, अंतर-द्वन्द है
और ऊपर से
महंगाई के मारे हवा बन्द है
आई.टी.ओ. हमारे यहाँ आता
तो भला क्या पाता?
वें बोलीं : "तुम तो कवि हो न
आँसू को मोती
और वेदना को हीरा समझते हो
काश!
एंकम्टैक्स वाले
हमारे यहाँ आते
तो तुम्हारे
हीरे और मोती तो पाते
नोटों की गड्डी न सही
लाख दो लाख
आँसू ही ले जाते।"
हमने कहा:"पगली
किसी को हमारे आँसुओं से
क्या लेना देना
अगर आँसू भी
लेन देन का माध्यम हो गया होता
तो हमारे पास वो भी नहीं होता
ग़रीब की आँखो कि बजाय
तिज़ोरी में बन्द हो गया होता
तिज़ोरी!
जिसमें बन्द है
लहलहाते खेत की मुस्कान
थके हारे होरी का पसीना
मजबूर धनिया का यौवन
सावन का महीना
सिसकती पायल की झंकार
भूकी और बेबस रधिया का प्यार
अनाथालय का चन्दा
और अपनी ही लाश ढोता हुआ
किसी गरीब बच्चे का कन्धा।"
वे बोलीं: "चुप हो जाओ
लाला के रेडिओ से
ऊँचा बोल रहे हो
रेडिओ बिजली से चलता है
उसका क्या बिगडता है
तुम तो ब्लड प्रेशर के मरीज़ हो
अभी पसर जाओगे
फिर तुम जहाँ चीख़ रहे हो
वह कविता का मंच नहीं
तुम्हारे डेढ़ कमरे के शीश महल का
पलस्तर उखड़ा बरामदा है
ब्याह भी हुआ तो कवि से
भगवान जाने
किस्मत में क्या बदा है
इंकमटैक्स देने लायक भी नहीं। "