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"स्वप्न का होना बेहद जरूरी है / विश्वरंजन" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[प्रश्नचिह्न / विश्वरंजन]] | ||
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23:59, 5 मई 2009 का अवतरण
शब्दकमल खिला है
रचनाकार | विश्वरंजन |
---|---|
प्रकाशक | प्रकाशन संस्थान |
वर्ष | 1999 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविता |
विधा | |
पृष्ठ | 119 |
ISBN | |
विविध |
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- तुम ग़लत कहती हो मैं तुम्हारा मुन्ना नहीं हूँ माँ / विश्वरंजन
- रात की बात / विश्वरंजन
- शब्दों के बाबत / विश्वरंजन
- रेगीस्तानी स्वप्न का ध्वस्त होना / विश्वरंजन
- मैं फिर से नया लोहबान जलाता हूँ / विश्वरंजन
- अंघेरे से लड़ने के लिए स्वप्न का होना बेहद ज़रूरी है / विश्वरंजन
- साँसों के बीच की चुप्पी और नावों का शहर / विश्वरंजन
- मैं अभी तक शाम से टिका लेटा अपनी सुबह में कैद हूँ / विश्वरंजन
- मेरा खानाबदोश हो जाना / विश्वरंजन
- आदिम प्रलय की प्रतिगूँज आज तक जीवित है मुझमें / विश्वरंजन
- प्रश्नचिह्न / विश्वरंजन
- वह लड़की बड़ी हो गई है/ विश्वरंजन
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