भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' }} अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब<br> मुझ दिल-ज...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' | |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' | ||
}} | }} | ||
+ | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
+ | <poem> | ||
+ | अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब| | ||
+ | मुझ दिल-जले को नींद न आई तमाम शब| | ||
+ | [अंदोह=दुख; तमाम शब=पूरी रात] | ||
− | + | चमक चली गई थी सितारों की सुबह तक, | |
− | + | की आस्माँ से दीदा-बराई तमाम शब| | |
− | + | जब मैंने शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं, | |
− | + | यक़ीनी थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब| | |
+ | [यक़ीनी= अनुशासनहीनता] | ||
− | + | वक़्त-ए-सियाह ने देर में कल यावरी सी की, | |
− | + | थी दुश्मनों से इन की लड़ाई तमाम शब| | |
+ | [सियाह=दर्क; यावरी= मदद] | ||
− | + | तारे से तेरी पलकों पे क़तरे थे अश्क के, | |
− | + | दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब| | |
− | + | </poem> | |
− | तारे से तेरी पलकों पे क़तरे थे अश्क के | + | |
− | दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब | + |
23:20, 7 मई 2009 का अवतरण
अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब|
मुझ दिल-जले को नींद न आई तमाम शब|
[अंदोह=दुख; तमाम शब=पूरी रात]
चमक चली गई थी सितारों की सुबह तक,
की आस्माँ से दीदा-बराई तमाम शब|
जब मैंने शुरू क़िस्सा किया आँखें खोल दीं,
यक़ीनी थी मुझ को चश्म-नुमाई तमाम शब|
[यक़ीनी= अनुशासनहीनता]
वक़्त-ए-सियाह ने देर में कल यावरी सी की,
थी दुश्मनों से इन की लड़ाई तमाम शब|
[सियाह=दर्क; यावरी= मदद]
तारे से तेरी पलकों पे क़तरे थे अश्क के,
दे रहे हैं "मीर" दिखाई तमाम शब|