भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुबाइयाँ / जाँ निसार अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} Category:रुबाइयाँ <poem> 1. अब्र में छुप गया ...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
 
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
 
}}
 
}}
[[Category:रुबाइयाँ]]
+
[[Category:रुबाई]]
 
<poem>
 
<poem>
 
1. अब्र में छुप गया है आधा चाँद  
 
1. अब्र में छुप गया है आधा चाँद  

14:24, 8 मई 2009 के समय का अवतरण

1. अब्र में छुप गया है आधा चाँद
चाँदनी छ्न रही है शाखों से
जैसे खिड़की का एक पट खोले
झाँकता हो कोई सलाखों से

2. चंद लम्हों को तेरे आने से
तपिश-ए-दिल ने क्या सुकूँ पाया
धूप में गर्म कोहसारों पर
अब्र का जैसे दौड़ता साया

3. इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
अपने जज़बात की हसीं तहरीर
किस मोहब्बत से तक रही है मुझे
दूर रक्खी हुई तेरी तस्वीर

4. ये मुजस्स्म सिमटती मेरी रूह
और बाक़ी है कुछ नफ़स का खेल
उफ़ मेरे गिर्द ये तेरी बांहें
टूटती शाख पर लिपटती बेल

5. ये किसका ढलक गया है आंचल
तारों की निगाह झुक गई है
ये किस की मचल गई हैं ज़ुल्फ़ें
जाती हुई रात रुक गई है

6. जीवन की ये छाई हुई अंधयारी रात
क्या जानिए किस मोड़ पे छूटा तेरा साथ
फिरता हूँ डगर- डगर अकेला लेकिन
शाने पे मेरे आज तलक है तेरा हाथ