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"जिजीविषा / सुकीर्ति गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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14:33, 8 मई 2009 का अवतरण

(1)

खिड़की से झांकती

पीपल की नरम हरी पत्तियां

वायु के ताजे झोंके सी

बेचैनी छीन

स्नेह भरती हैं,

हवा-पानी धरती

और मनुष्य का प्यार

पनप जाती हैं शाखें

छत की फांक, काई भरी दीवार, पाइप

सम्बन्धों की गहराई माप

हरीतिमा खिलखिलाती है।

(2)

झुकी कमर

ठक ठक देहरी

उम्र नापती

इधर-उधर देखती

एक बस; दो बस अनेक बस

जाने देती रिक्शा ठेला भी

युवक ठिठकता है

वत्सला कांपती

थाम लेती है हाथ

उसे सड़क पार जाना है।