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"मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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लेखन वर्ष: 2004
मैं बहुत तन्हा रहा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
साँसों में हर ग़म पिरोया, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
सब कुछ खोया कुछ न पाया इस दुनिया में
पल-पल मैं तड़पा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
आसमाँ ओढ़े बैठी रही तेरे लिए इक सदी
न रोशनी न चन्द्रमा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
बहती रही तेरे ही जानिब, ज़मीं इश्क़ में
न’असरकार रही दुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
हम खिंचे चले जाते हैं किस ओर क्या पता
हर तरफ़ नया चेहरा, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
ऊदी हुई आँखों में नम है एक पुराना मौसम
हर साँस में लिपटा हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी
था बहुत सख़्तजान तेरा यह उम्मीदवार
‘नज़र’ नाचार हुआ, बिगैर तेरे ज़िन्दगी