"मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
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लेखन वर्ष: 2004
मेरा यह दर्द ख़त्म हो जाये कभी
जो दुआ में तू मुझे माँग पाये कभी
टूट चुके हैं मेरी तमन्ना के दोश
तू ख़ुद संभाला देने को आये कभी
कबसे गया है न आया आज तक
मेरी आरज़ू तुझे खींच लाये कभी
ख़ुदाया मैं भटक रहा हूँ सहराँ में
कोई इस तस्कीं को मिटाये कभी
ग़मगीन शाम है और उदास हम
क्यों गुफ़्तगू का मौक़ा आये कभी
हमसे उल्फ़त किये बनती नहीं
मोहब्बत राहे-जुस्तजू पाये कभी
ख़स्ता हाल है दिल बहुत तेरे लिए
तुझे मजमूँ यह समझ आये कभी
तस्वीर मुझसे बात करती नहीं
तेरा यह दीवाना सुकून पाये कभी
तेरी कशिश भरी एक नज़र इधर
दिल पर अपना जादू चलाये कभी
तुम न जानो मेरे प्यार के बारे में
और ख़ुशबू तेरा पयाम लाये कभी
पहली नज़र से जो हसरत है मुझे
काश ख़ूबरू उसे समझ पाये कभी
शब्दार्थ:
दोश : कंधा, shoulder | मजमूँ : विषय, subject | ख़ूबरू : सुन्दर चेहरे वाला, beautiful