"हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा/ विनय प्रजापति 'नज़र'" के अवतरणों में अंतर
विनय प्रजापति (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र' }} category: ग़ज़ल <poem> '''लेखन वर्ष:...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:19, 9 मई 2009 का अवतरण
लेखन वर्ष: 2004
हर वो शख़्स जिसको मैंने अपना ख़ुदा कहा
बादे-मतलब उस ने मुझ से अलविदा कहा
जिसे मैं मानता हूँ धोख़ा-ओ-अय्यारी यारों
ज़माने ने उस को हुस्न की इक अदा कहा
वह प्यार जिस को एहसास कहते थे सभी
उसने आज उसको बदन की इक सदा कहा
मैं था उसके पीछे ज़माने की ग़ालियाँ खाकर
उस ने मुझे किसी ग़ैर हुस्न पर फ़िदा कहा
जिन आँखों का तअल्लुक मैं देता था मस्जिद से
उसे उस के यार ने महज़ इक मैक़दा कहा
मैं कहता था उससे अपने ज़ख़्मों की कहानी
उसने कुछ और नये ज़ख़्मों को तयशुदा कहा
शब्दार्थ:
सदा: पुकार, call; बादे-मतलब: मतलब पूरा होने के बाद, ; धोख़ा-ओ-अय्यारी: धोख़ा और चालाकी, cheating and cleverness; तअल्लुक: ताल्लुक, relation; मैकदा:शराबख़ाना, bar; तयशुदा:निश्चित, certain