भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अहले-दिल और भी हैं / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (अहले-दिल और भी हैं / परवीन शाकिर का नाम बदलकर अहले-दिल और भी हैं / साहिर लुधियानवी कर दिया गया है)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं<br>
 
अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं<br>
एक हम ही नहीं दुनिया से खफा और भी हैं<br><br>
+
एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा  और भी हैं<br><br>
  
 
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी<br>
 
हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी<br>
चाक दिल और भी हैं चाक कबा और भी हैं<br><br>
+
चाक दिल और भी हैं चाक क़बा और भी हैं<br><br>
  
क्या हुआ अगर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं<br>
+
क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं<br>
 
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं<br><br>
 
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं<br><br>
  
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं<br><br>
 
जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं<br><br>
  
मुंसिफ-ए-शहर की वहदत पे ना हरफ आ जाये<br>
+
मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाये <br>
लोग कहते हैं की अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं
+
लोग कहते हैं कि अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं

21:01, 9 मई 2009 का अवतरण

अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं

हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी
चाक दिल और भी हैं चाक क़बा और भी हैं

क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं

सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी
जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं

मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाये
लोग कहते हैं कि अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं