भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझे दे रहें हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }}<poem> Category:ग़ज़ल मुझे दे रहें हैं...) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}}<poem> | }}<poem> | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
− | मुझे दे | + | मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा पयाम से |
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से | कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से | ||
− | न | + | न गरज़ किसी से न वास्ता, मुझे काम अपने ही काम से |
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से, तेरी याद से, तेरे नाम से | तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से, तेरी याद से, तेरे नाम से | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
तू पिलाये जा, तू पिलाये जा, इसी चश्म-ए-जाम ब जाम से | तू पिलाये जा, तू पिलाये जा, इसी चश्म-ए-जाम ब जाम से | ||
− | तेरी | + | तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला, तुझे अए फ़लक जो हो हौसला |
कभी करले आके मुक़ाबिला, ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से | कभी करले आके मुक़ाबिला, ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से |
00:15, 10 मई 2009 के समय का अवतरण
मुझे दे रहे हैं तसल्लियाँ वो हर एक ताज़ा पयाम से
कभी आके मंज़र-ए-आम पर कभी हट के मंज़र-ए-आम से
न गरज़ किसी से न वास्ता, मुझे काम अपने ही काम से
तेरे ज़िक्र से, तेरी फ़िक्र से, तेरी याद से, तेरे नाम से
मेरे साक़िया, मेरे साक़िया, तुझे मरहबा, तुझे मरहबा
तू पिलाये जा, तू पिलाये जा, इसी चश्म-ए-जाम ब जाम से
तेरी सुबह-ओ-ऐश है क्या बला, तुझे अए फ़लक जो हो हौसला
कभी करले आके मुक़ाबिला, ग़म-ए-हिज्र-ए-यार की शाम से