भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपना सुख, अपनी चुभन / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[कमलेश भट्ट 'कमल']]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कमलेश भट्ट 'कमल']]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
 +
}}
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
 
अपना सुख, अपनी चुभन कब तक चले
 
अपना सुख, अपनी चुभन कब तक चले
  

13:44, 10 मई 2009 के समय का अवतरण

अपना सुख, अपनी चुभन कब तक चले

ख़ुद में ही रहना मगन कब तक चले।


जुल़्म पर हम चुप हैं, चुप हैं आप भी

देखना है ये चलन कब तक चले।


कोशिशें तो खत्म करने की हुईं

अब रही क़िस्मत वतन कब तक चले।


वो मरा था भूख से या रोग से

देखिए इस पर `सदन' कब तक चले।


जिस्म से चादर अगर छोटी है तो

जिस्म ढँकने का जतन कब तक चले।


जिनकी आँखों में बसी हों मंज़िलें

उनके पाँवों में थकन कब तक चले।