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"आदमी को खुशी से / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
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13:45, 10 मई 2009 का अवतरण
आदमी को खुशी से ज़ुदा देखना
ठीक होता नहीं है बुरा देखना।
पुण्य के लाभ जैसा हमेशा लगे
एक बच्चे को हँसता हुआ देखना।
रोशनी है तो है ज़िन्दगी ये जहाँ
कौन चाहेगा सूरज बुझा देखना।
सर-बुलन्दी की वो कद्र कैसे करे
जिसको भाता हो सर को झुका देखना।
ज़िन्दगी खुशनुमा हो‚ नहीं हो‚ मगर
ख़्वाब जब देखना‚ खुशनुमा देखना।
सारी दुनिया नहीं काम आएगी जब
काम आएगा तब भी खुदा‚ देखना।