भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख्व़ाब छीने, याद भी सारी / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
रचनाकार: [[कमलेश भट्ट 'कमल']]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कमलेश भट्ट 'कमल']]
+
{{KKRachna
[[Category:कविताएँ]]
+
|रचनाकार=कमलेश भट्ट 'कमल'
 +
}}
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
 
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
 
ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
 
ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली
  

13:49, 10 मई 2009 के समय का अवतरण

ख्व़ाब छीने, याद भी सारी पुरानी छीन ली

वक़्त ने हमसे हमारी हर कहानी छीन ली।


पर्वतों से आ गई यूँ तो नदी मैदान में

पर उसी मैदान ने सारी रवानी छीन ली।


दौलतों ने आदमी से रूह उसकी छीनकर

आदमी से आदमी की ही निशानी छीन ली।


देखते ही देखते बेरोज़गारी ने यहाँ

नौजवानों से समूची नौजवानी छीन ली।


इस तरह से दोस्ती सबसे निभाई उम्र ने

पहले तो बचपन चुराया फिर जवानी छीन ली।