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"देह के रहते ज़माने की / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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देह के रहते ज़माने की कई बीमारियाँ भी हैं
 
देह के रहते ज़माने की कई बीमारियाँ भी हैं
  

13:50, 10 मई 2009 का अवतरण

देह के रहते ज़माने की कई बीमारियाँ भी हैं

आदमी होने की लेकिन हममें कुछ खुद्दारियाँ भी हैं।


कोई भी खुद्दार अपनी रूह का सौदा नहीं करता

और करता है तो इसमें उसकी कुछ लाचारियाँ भी हैं।


चाहतें जीने की छोड़ी जायेंगी हरगिज नहीं हमसे

जिन्दगी में यूँ कि ढेरों ढेर-सी दुश्वारियाँ भी हैं।


इस शहर से जिन्दगी को छीन सकता है नहीं कोई

मौत है इसमें अगर तो जन्म की तैयारियाँ भी हैं।


कोई झोंका फिर अलावों में तपिश भर जाएगा भाई

ाख तो है राख के भीतर मगर चिन्गारियाँ भी हैं।