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"वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर
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वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलाते | वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलाते | ||
13:56, 10 मई 2009 के समय का अवतरण
वृक्ष अपने ज़ख्म आखिर किसको दिखलाते
पत्तियों के सिर्फ पतझड़ तक रहे नाते।
उसके हिस्से में बची केवल प्रतीक्षा ही
अब शहर से गाँव को खत भी नहीं आते।
जिनकी फितरत ज़ख़्म देना और खुश होना
किस तरह वे दूसरों के ज़ख़्म सहलाते।
अपनी मुश्किल है तो बस खामोश बैठे हैं
वरना खुद भी दूसरों को खूब समझाते।
खेल का मैदान अब टेलीविज़न पर है
घर से बाहर शाम को बच्चे नहीं जाते।