भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आये कुछ अब्र कुछ शराब आये / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} Category:गज़ल आये कुछ अब्र कुछ शराब आये<...) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
बाम-ए-मीना से माहताब उतरे<br> | बाम-ए-मीना से माहताब उतरे<br> | ||
− | दस्त-ए-साक़ी में | + | दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये<br><br> |
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो<br> | हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो<br> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम<br> | जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम<br> | ||
− | जब भी हम | + | जब भी हम ख़ानाख़राब आये<br><br> |
− | इस तरह अपनी | + | इस तरह अपनी ख़ामोशी गूँजी<br> |
गोया हर सिम्त से जवाब आये<br><br> | गोया हर सिम्त से जवाब आये<br><br> | ||
'फ़ैज़' थी राह सर बसर मंज़िल<br> | 'फ़ैज़' थी राह सर बसर मंज़िल<br> | ||
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये | हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये |
20:51, 13 मई 2009 का अवतरण
आये कुछ अब्र कुछ शराब आये
उस के बाद आये जो अज़ाब आये
बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बेनक़ाब आये
उम्र के हर वरक़ पे दिल को नज़र
तेरी मेहेर-ओ-वफ़ा के बाब आये
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये
न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूं रोज़ इन्क़लाब आये
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानाख़राब आये
इस तरह अपनी ख़ामोशी गूँजी
गोया हर सिम्त से जवाब आये
'फ़ैज़' थी राह सर बसर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये