भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें / सौदा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}}[[Category:गज़ल]] | }}[[Category:गज़ल]] | ||
− | <poem>आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें | + | <poem> |
+ | आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें | ||
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें | दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें | ||
पंक्ति 11: | पंक्ति 12: | ||
औरों से छुटे दिलबर, दिलदार होवे मेरा | औरों से छुटे दिलबर, दिलदार होवे मेरा | ||
− | बर हक़ है अगर पीरों, कुछ तुम में करामातें | + | बर हक़ है अगर पीरों, कुछ तुम में करामातें<ref>चमत्कार</ref> |
− | + | ||
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मेरी आँखें | कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मेरी आँखें | ||
पंक्ति 18: | पंक्ति 19: | ||
इस इश्क़ के कूचे में ज़ाहिद तू सम्भल चलना | इस इश्क़ के कूचे में ज़ाहिद तू सम्भल चलना | ||
− | कुछ पेश न जावेंगी यहाँ तेरी | + | कुछ पेश न जावेंगी यहाँ तेरी मनाजातें<ref>प्रार्थनाएँ</ref> |
− | + | ||
− | सौदा को अगर पूछो अहवाल है ये उसका | + | सौदा को अगर पूछो अहवाल<ref>हाल |
+ | </ref> है ये उसका | ||
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें | दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
18:14, 15 मई 2009 का अवतरण
आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें
मरता हूँ मैं इस दुख से, याद आती हैं वो बातें
क्या दिन वो मुबारक थे, क्या ख़ूब थीं वो रातें
औरों से छुटे दिलबर, दिलदार होवे मेरा
बर हक़ है अगर पीरों, कुछ तुम में करामातें<ref>चमत्कार</ref>
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मेरी आँखें
कुछ ज़ोर ही आपस में दो दो हुई समघातें
इस इश्क़ के कूचे में ज़ाहिद तू सम्भल चलना
कुछ पेश न जावेंगी यहाँ तेरी मनाजातें<ref>प्रार्थनाएँ</ref>
सौदा को अगर पूछो अहवाल<ref>हाल
</ref> है ये उसका
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें
शब्दार्थ
<references/>