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|संग्रह=
}}[[Category:गज़ल]]
<poem> जहाँ तलक भी ये सेहरा हरा दिखाई देता है
मेरी तरह से अकेला दिखाई देता है
शजर पे एक ही पत्ता दिखाई देता है
बुरा ना मानिये लोगों की ऐब-जूई का इंहें इन्हें तो दिन का भी साया दिखाई देता है
ये एक अब्र का टुकरा टुकड़ा कहाँ - कहाँ बरसे
तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है
वो अलविदा का मंज़र वो भिगती भीगती पलकें पासपस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
मेरी निगाह से छुप कर कहाँ रहेगा कोई
के अब तो संग भी शीशा दिखाई देता है
सिमट के रह दये गये आख़िर पहाड पहाड़- से क़द भी
ज़मीं से हर कोई ऊँचा दिखाई देता है