भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"है ज़िन्दगी की ज़िद कि ये हरक़त बनी रहे / प्रेम भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेम भारद्वाज |संग्रह= अपनी ज़मीन से }} [[Category:ग़ज़...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:27, 17 मई 2009 के समय का अवतरण


है ज़िन्दगी की ज़िद कि ये हरक़त बनी रहे
उसपर हमेशा मौत की आफ़त बनी रहे

उसकी बुतों को तोड़ना आदत बनी रहे
अपनी भी सबको जोड़ना हसरत बनी रहे

मंज़ूर है तरक़्क़ी मगर एक शर्त है
इक दूसरे की सबको ज़रूरत बनी रहे

आईन<ref> विधान </ref> में लिखा है जो क़िरदार<ref >चरित्र </ref> में भी हो
यानि जहाँ में क़ौम की इज़्ज़त बनी रहे

अभिमन्यु-वध उनके लिए छोटी-सी बात है
चाहें महारथी ये सियासत बनी रहे

इन्सानियत के हो के तरफ़दार ये मिला
कोई न कोई ज़ेह्न पर आफ़त बनी रहे

कुछ यूँ चले कि प्यार के रस्ते खुले रहें
कुछ यूँ करे कि सबमें महब्बत बनी रहे

ज़िन्दा है जिसके दम से ये बरक़त<ref>प्रचुरता</ref> जो प्रेम की
शेरो-सुख़न अदब की वो ताक़त बनी रहे.

शब्दार्थ
<references/>